नरक जाने का असली हकदार कौन होता है
नरक जाने का असली हकदार कौन होता है | swarg jane ka asli hakdar
धर्मराज की कहानी | MOTIVATIONAL STORY IN HINDI.
मनुष्य जाने-अनजाने में अपने जीवन काल में कई बुरे और अच्छे कर्म करता है लेकिन मृत्यु के बाद मनुष्य को अपने द्वारा किए गए सभी कर्मों का हिसाब देना पड़ता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वर्ग जाने का असली हकदार कौन होता है और वह कौन सा पाप है।
जिसे करने वाले मनुष्य को नरक जाने से कोई नहीं रोक सकता आज एक प्राचीन कथा के माध्यम से हम आपको बताने का प्रयास करेंगे कि पूजा पाठ दान धर्म जब तब आदि प्रकार के करोड़ों पुण्य के काम करने के बाद भी कुछ मनुष्य नरक में ही क्यों जाते हैं साथ ही हम जानेंगे कि अत्यधिक पाप करने पर भी कुछ मनुष्यों को स्वर्ग की प्राप्ति किस पुण्य के कारण मिलती है।
ऐसा कौन सा पुण्य है जो मनुष्य के करोड़ों पापों का नाश करता है और ऐसा कौन सा पाप है जो उसके करोड़ों पुण्यं को नष्ट कर डालता है तो चलिए दोस्तों बिना देरी किए शुरू करते हैं इस रहस्यमय कथा को वीडियो शुरू करने से पहले एक छोटा सा निवेदन है कि कमेंट में जय नारायण अवश्य लिखें।
एक समय की बात है देवर्षि नारद वैकुंठ लोक में जाते हैं और भगवान विष्णु से पूछते हैं हे प्रभु कुछ मनुष्य पाप करने पर भी स्वर्ग में क्यों जाते हैं और कुछ मनुष्यों को पुण्य करने के बावजूद भी नरक में क्यों जाना पड़ता है वह कौन सा पाप है जो सभी पुण्यं को नष्ट कर डा डालता है और वह कौन सा पुण्य है जो समस्त पापों को भस्म कर डालता है।
तब भगवान विष्णु कहते हैं हे देवर्षि आज आपने संसार के कल्याण हेतु बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है इसी संदर्भ में आज मैं आपको एक अत्यंत प्राचीन इतिहास सुनाता हूं जिसे सुनकर आपको आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे इसीलिए आप इस कथा को ध्यान से पूरा जरूर सुने जो भी मनुष्य इस कथा का श्रवण करता है।
उसके समस्त पापों का नाश होता है देवर्षि कहते हैं हे प्रभु आपके मुख से इस कथा को सुनना मेरा सौभाग्य है मैं इस कथा को ध्यान से पूरा अवश्य सुनूंगा और इसका प्रचार करूंगा भगवान विष्णु कहते हैं हे देवर्षि प्राचीन काल की बात है मध्य देश के एक नगर में एक ही समय पर पांच मनुष्यों की मृत्यु हो जाती है और वे सभी मृत्यु के पश्चात यमलोक में पहुंच जाते हैं।
यमलोक पहुंचने पर वहां का दृश्य देखकर वे सभी भयभीत हो जाते हैं उनका अंगअंग कांपने लगता है यमलोक में विशालकाय आकार वाले यमराज स्वर्ण से बने सिंहासन पर विराजमान होते हैं उनके पास चित्रगुप्त जी बैठे हैं जिनके पास सभी प्राणियों का लेखा जोखा रखा होता है यम के दूत प्राणियों को आगे की ओर धकेल रहे होते हैं कुछ मनुष्य जोर-जोर से विलाप कर रहे होते हैं तो कुछ मनुष्य अत्यंत प्रसन्न होकर चल रहे होते हैं।
स्वर्ग के द्वार से सुंदर प्रकाश दिखाई पड़ रहा होता है तो वहीं नरक के द्वार से धधकती हुई अग्नि की ज्वाला एं दिखाई पड़ रही होती हैं इस भयानक दृश्य को देखकर वे पांचों एक दूसरे से बात करने लगते हैं और अपने-अपने पापों के विषय में चर्चा करने लगते हैं उन पांच में से चार लोगों ने अपने जीवन में बहुत पाप कर्म किए हुए होते हैं और उन सभी को यह जान पड़ता है कि अब वे चारों नरक में ही जाने वाले उन पांच लोगों में एक चोर होता है दूसरी वैश्या होती है तीसरा विद्वान पंडित होता है।
चौथा एक राजा का सैनिक होता है तथा पांचवा एक धनवान किसान होता है वे पांचों अपने अपने कर्म फलों को भुगतने के लिए तैयार होते हैं फिर एक-एक करके सभी पापी और पुण्य आत्माएं आगे चल रही होती हैं वे चारों एक दूसरे को अपने द्वारा किए हुए पाप कर्मों के बारे में बताने लगते हैं पहले चोर कह ता है भाई मैं तो पक्का नरक में ही जाऊंगा।
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क्योंकि मैंने बहुत बार चोरी की है दूसरों का धन लूटा है दूसरों को तकलीफ दी है लेकिन ऐसा मैंने मजबूरी में किया था चोरी करके मैं अपने परिवार का पेट पालता था क्योंकि मुझे कोई काम नहीं देता था शायद विधाता ने मेरे भाग्य में यही लिखा था इसीलिए मैं ही हम चारों में से सबसे बड़ा पापी हूं मेरे पाप से मुझे कभी मुक्ति नहीं मिलेगी यह मैं जानता हूं पता नहीं मुझे अगला जन्म किस पशु का मिलेगा यमराज मुझे कौन सा दंड देंगे उसके बाद वह सैनिक बोलता है भाई हम चारों में सबसे बड़ा पापी तो मैं ही हूं मैंने बहुत बड़े पाप किए मैं एक राजा का सिपाही था।
इसीलिए मैं लोगों पर जोर जबरदस्ती करता था मैंने ना जाने कितनों के प्राण लिए हैं ना जाने कितने मासूम लोगों को सताया है ना जाने कितने निर्दोष लोगों को मेरे हाथों से से दंड मिला है यमराज मुझे कभी क्षमा नहीं करेंगे और मैं निश्चित ही नरक में ही जाऊंगा लेकिन मैंने यह सभी पाप जानबूझकर नहीं किए हैं अपने प्राणों के भय से और परिवार के पालन पोषण के लिए ही मुझे यह पाप करने पड़े हैं हमारा राजा जो कहता था।
उसका पालन हमें करना पड़ता था राजा के विरुद्ध भला कोई साधारण मनुष्य कैसे जा सकता है यह सभी पाप करते हुए मुझे अत्यंत दुख भी होता था और मैं जानता था कि यह पाप करने से मुझे नरक की ही प्राप्ति होगी किंतु परिवार के मोह वश होकर ही मैंने यह काम किया है लेकिन पाप तो पाप होता है पाप करके पश्चाताप करने का क्या फायदा इसीलिए मेरे नसीब में नरक में जाना ही लिखा है उसके बाद वह वैश्या बोलती है भाई हम चारों में से मैं ही सबसे बड़ी पापिनी हूं।
मुझसे बड़ा पाप यहां पर किसी ने नहीं किया होगा जो स्त्री अनेक पुरुषों के साथ संबंध बनाती है उसे नरक में ही डाला जाता है यही शास्त्र कहते हैं इसीलिए मेरा भी नरक में जाना तय है किंतु मैं शपथ खाकर कहती हूं कि मैंने यह पाप जानबूझकर नहीं किया है जब मैं छोटी उम्र की थी तभी एक दुष्ट व्यक्ति मुझे उठाकर ले गया और जबरदस्ती मुझे वैश्या बना दिया मैंने ना चाहते हुए भी कई पुरुषों से संबंध बनाए हैं।
मेरे पास जीवित रहने के लिए यही एक उपाय बचा था मैं करती भी तो क्या कर करती मेरे पास इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं उस दुष्ट पुरुष से लड़ सकूं पता नहीं किस पाप के कारण मुझे इस जन्म में वैश्या बनना पड़ा और ना जाने आगे मुझे किस पशु के रूप में जन्म लेना पड़ेगा मेरे पाप से यह जान पड़ता है कि मैं भी पक्का नरक में ही जाऊंगी उसके बाद वह विद्वान पंडित बोलता है भाई हम चारों में से सबसे बड़ा पापी तो मैं हूं तुम लोगों ने जो पाप किए हैं वह जाने अनजाने में किए हैं या किसी ने तुमसे जबरदस्ती करवाए हैं या फिर तुम लोगों ने यह पाप मजबूरी में किए हैं।
किंतु मैं तो विद्वान था मैं सब सत्य जानता था मुझे सच और झूठ का ज्ञान था लेकिन फिर भी मैंने धन के लोभ के कारण यह पाप किए हैं शास्त्र कहते हैं कि जो सब कुछ जानकर भी पाप करता है वह निश्चित ही नरक में जाता है मैंने अपने ज्ञान का दुरुपयोग किया है मैंने अपने ज्ञान का उपयोग लोगों की सहायता के लिए नहीं बल्कि धन को कमाने के लिए किया है।
मेरे घर की परिस्थिति अत्यंत गरीब थी मेरे पिता भिक्षा मांगकर गुजारा करते थे लेकिन मैंने अपने घर की गरीबी को दूर करने के लिए धन लेकर ज्ञान देने की चेष्टा की है शास्त्र कहते हैं जो विद्वान ब्राह्मण अपने ज्ञान का दुरुपयोग करता है उसे निश्चित ही नरक में जाना पड़ता है मैंने लोगों को ज्ञान देने के बदले में उनसे धन लिया है कभी भी किसी को मुफ्त में ज्ञान नहीं दिया इसीलिए आप चारों में से सबसे बड़ा पापी तो मैं ही हूं और मुझे ही नरक में जाना पड़ेगा उन चारों की बात सुनकर वह धनी किसान हंस पड़ा और बोलने लगा तुम चारों तो इतने बड़े पापी हो कि तुम लोगों को नरक में जाना ही पड़ेगा।
तुम लोगों ने जीवन भर सिर्फ पाप ही किए हैं इसीलिए यमराज तुम लोगों को कभी माफ नहीं करेंगे यहां पर मौजूद मैं अकेला ही सबसे अधिक पुण्यवान हूं मैंने अपने जीवन में बहुत पूजा पाठ किया है ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दी है मैंने मृत्यु से पूर्व गाय का दान भी किया है और अब मेरे सभी पुत्र पौत्र मेरी आत्मा की मुक्ति के लिए बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं वे मेरे लिए श्राद्ध दान तर्पण कर रहे हैं यज्ञ कर रहे हैं इसीलिए मैं सबसे अधिक पुण्यवान हूं मेरी तीन पत्नियां और 10 पुत्र हैं।
इतने लोग मेरी मुक्ति के लिए उपाय कर रहे हैं मैंने अपने जीवन में कभी भी कोई पाप नहीं किया है और जाने अनजाने में किए भी होंगे तो मेरे पुत्रों के श्राद्ध आदि के कार्यों द्वारा मेरे पाप भी नष्ट हो जाएंगे मैं नित्य देव पूजा करता था मंदिर जाता था द्वार पर आए अतिथियों को भोजन कराता था इसीलिए मुझे पूरा विश्वास है कि यमराज मुझे नरक में नहीं डालेंगे और मुझे मोक्ष की प्राप्ति निश्चित ही होगी फिर वे पांचों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगते हैं और फिर जब उनका समय आता है तो उन पांचों के पाप और पुण्य के कर्मों का मूल्यांकन किया जाता है।
सबसे पहले बारी आती है उस चोर की और फिर चित्रगुप्त उसका लेखा जोखा निकालते हैं कुछ देर तक विचार करने के बाद उसके पाप पुण्य का मूल्यांकन करने के बाद यमराज उसे स्वर्ग में जाने के लिए कहते हैं इस निर्णय को सुनकर चोर आश्चर्य में पड़ जाता है और बड़ी ही प्रसन्नता से वह स्वर्ग के दरवाजे की ओर चला जाता है दूसरी बारी आती है वैश्या की चित्रगुप्त उस वैश्या का भी लेखा जोखा निकालते हैं और कुछ देर तक विचार करने के बाद उसके पाप पुण्य का मूल्यांकन करके यमराज उसे भी स्वर्ग में जाने के लिए कहते हैं इस विचित्र निर्णय को सुनकर वह वैश्या भी आश्चर्य में पड़ जाती है।
उसे यमराज के निर्णय पर विश्वास नहीं होता है और वह बिना कुछ कहे ही बड़ी ही प्रसन्नता के साथ स्वर्ग के द्वार की ओर चली जाती है फिर तीसरी बारी आती है उस सिपाही की चित्रगुप्त उसके भी कर्मों का लेखा जोखा निकालते हैं और कुछ समय विचार करके उसके पाप पुण्य का मूल्यांकन करके यमराज उसे भी स्वर्ग में जाने के लिए कहते हैं इस निर्णय को सुनकर वह सिपाही भी सोच में पड़ जाता है और बड़ी ही प्रसन्नता के साथ वह स्वर्ग के द्वार की ओर निकल जाता है।
फिर चौथी बारी आती है उस विद्वान ब्राह्मण की चित्रगुप्त उस ब्राह्मण के कर्मों का भी लेखा जोखा निकालते हैं और कुछ देर तक विचार करते हैं फिर यमराज उस ब्राह्मण को भी स्वर्ग में जाने के लिए कहते हैं फिर वह विद्वान ब्राह्मण विचार करता है कि मैंने तो कितने पाप किए हैं फिर भी यमराज मुझे स्वर्ग में भेज रहे हैं फिर वह भी मन ही मन प्रसन्न होकर स्वर्ग के द्वार की ओर चलने लगता है उन चारों को स्वर्ग में जाता देख वह धनवान किसान बहुत दुखी और क्रोधित हो जाता वह सोचने लगता है कि यह कैसा न्याय है इन पापियों को स्वर्ग जाने का मौका मिल रहा है।
फिर मैंने जो पुण्य के काम किए हैं उनका क्या पापी और पुण्यवान अगर एक ही जगह पर डाले जाएंगे तो पुण्य करने का फायदा ही क्या है फिर उस धनवान किसान को यम के दूध जोर से धकेल देते हैं और कहते हैं अरे पापी तू आगे चल तुझे नरक में डाला जाएगा यमराज तुझे माफ नहीं करेंगे यह सुनकर वह धनवान किसान भयभीत हो जाता है और कहने लगता है।
हे यम दूतों मैं तो स्वर्ग में जाऊंगा मैंने कोई पाप नहीं किया है मैंने जीवन में बहुत पुण्य किया है देख लेना यमराज मुझे स्वर्ग में ही भेजेंगे फिर वह धनवान किसान यमराज के सामने आकर खड़ा हो जाता है चित्रगुप्त उसके भी कर्मों का लेखा जोखा देखते हैं और उसके पाप पुण्य के कर्मों का मूल्यांकन करते हैं तो उसके पाप का पलड़ा भारी हो जाता है और यमराज उस धनवान किसान को कहते हैं अरे दुष्ट तूने तो बहुत बड़ा अपराध किया है तू तो नरक में जाने के ही योग्य है इतना सुनते ही वह किसान थरथर कांपने लगता है और यमराज से कहता है।
हे धर्मराज यह अन्याय है मैंने तो जीवन में कोई पाप नहीं किए हैं बल्कि कई पुण्य कार्य ही किए हैं आप मुझे नरक में क्यों डाल रहे हैं और मुझसे पहले जो चार लोग गए थे वे तो कितने पापी थे उ ने बड़े-बड़े पाप और अपराध किए हैं उन्हें तो आपने स्वर्ग में डाल दिया है आप ऐसा अन्याय मेरे साथ क्यों कर रहे हैं अगर ऐसा अन्याय होगा तो भला कौन सा मनुष्य धरती पर पुण्य कार्य करेगा फिर यमराज कहते हैं अरे पापी तूने जो पाप किया है वह उन चारों के पापों के सामने कुछ भी नहीं है।
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तेरे एक पाप के कारण तेरा सारा पुण्य फल नष्ट हो गया है यदि तूने यह पाप नहीं किया होता तो तू भी स्वर्ग में जा सकता था लेकिन तूने यह पाप जानबूझकर किया है इसीलिए तुझे नरक में अवश्य ही जाना पड़ेगा उस चोर ने तो मजबूरी में चोरी की थी किंतु वह चोर दूसरों की भूख मिटाता था गरीबों को दान करता था उसने कभी किसी निर्दोष और गरीब व्यक्ति के घर चोरी नहीं की उसके पुण्य कर्म उसके पाप से अधिक थे।
इसीलिए वह चोर स्वर्ग में गया है दूसरी जो वैश्या थी वह अपने मन से वैश्या नहीं थी उसे जबरदस्ती डाला गया था और उस वैश्या ने केवल अपने शरीर को पीड़ा दी है लेकिन बाकी कार्य तो उसने पुण्य के ही किए हैं वह पशु पक्षियों को रोज दाना डालती थी जानवरों की सेवा करती थी इसीलिए उसका भी पुण्य पाप से बड़ा था तीसरा वह सिपाही था जिसने राजा के हुकुम का पालन किया था किंतु उसने भी बहुत पुण्य के काम किए हैं।
उसने कई बेसहारा लोगों की मदद की है इसीलिए वह भी स्वर्ग में गया है और चौथा वह विद्वान ब्राह्मण था उसने अपने ज्ञान का दुरुपयोग अवश्य किया है किंतु वह नित्य गाय की सेवा करता था दान धर्म करता था इसीलिए उसके भी पुण्य पाप से अधिक थे और वह भी स्वर्ग में ही गया है इतना सुनकर वह धनवान किसान बोलता है हे धर्मराज इन चारों ने जो भी पुण्य किए हैं वह तो मैंने भी किए हैं बल्कि उनसे ज्यादा किए हैं फिर भी मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जो मुझे नरक में भेजा जा रहा है यमराज कहते हैं हे दुष्ट याद कर तूने एक अबला विधवा नारी पर गलत लांछन लगाया था कि उसने तेरे घर पर चोरी की है और इसके साथ ही तूने उसके ऊपर कई अन्य गलत लांछन लगाए थे।
उसे व्यभिचारिणी और वैश्या कहकर उसके चरित्र का हनन किया था और राजा ने उसे सत्य समझकर उस अबला विधवा नारी को मृत्यु दंड दे दिया था मनुष्य ब्रह्म हत्या चोरी मदिरापान आदि प्रकार के पापों से प्रायश्चित करके मुक्त हो सकता है किंतु दूसरों पर गलत लांछन लगाने पर कोई प्रायश्चित नहीं है जो दूसरों पर गलत आरोप करता है सत्य जानकर भी दूसरों को झूठ कहकर उनके ऊपर दोष डालता है वह तो सबसे बड़ा पापी है।
उसके द्वारा किए गए सभी पुण्य नष्ट हो जाते हैं इसीलिए तूने जितने भी पुण्य किए हैं वे सभी उस एक पाप के कारण नष्ट हो गए हैं फिर यमराज यमदू तों को कहकर उस पापी किसान को नरक ले जाने के लिए कहते और वह किसान रोता हुआ विलाप करता हुआ नरक के मार्ग पर चलने लगता है हे देवर्षि इस प्रकार से उन चारों को पाप करके भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई किंतु उस किसान ने जघन्य अपराध किया था एक अबला स्त्री पर गलत लांछन करके उसका चरित्र हनन किया था एक स्त्री सदा ही पूजनीय है जो भी पुरुष स्त्री पर गलत आरोप करता है।
उसे महापाप लगता है कभी किसी स्त्री की दुर्बलता का फायदा नहीं उठाना चाहिए पराई स्त्री को सदैव ही माता समझना चाहिए जो पराई स्त्रियों पर गलत दृष्टि डालता है उसे पाप ही लगता है जो दुखिया स्त्री को सताता है उसे नरक में जाना पड़ता है मनुष्य को कभी सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए सत्य के मार्ग पर चलकर ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है असत्य का साथ देने से मनुष्य के सभी पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
इसीलिए कभी भी किसी पर गलत आरोप नहीं करना चाहिए सत्य जानकर भी असत्य का साथ नहीं देना चाहिए जो दूसरों पर गलत आरोप डालता है उसे भगवान कभी क्षमा नहीं करते हैं तो दोस्तों उम्मीद है आपको यह कथा पसंद आई होगी अगर वीडियो पसंद आई हो तो कहानी को लाइक अवश्य करें और कहानी को अपने बंधु बांधव के साथ साझा अवश्य करें और कमेंट में जय नारायण अवश्य लिखें साथ ही इसी तरह की ज्ञानवर्धक कहानी देखने के लिए हमारे चैनल रोज का ज्ञान को सब्सक्राइब अवश्य करें अभी के लिए सभी दर्शकों को हर हर महादेव। ....।

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